दिलों के भेद खोलता
तड़प कसक के साथ ही
आँखों में है डोलता
धरती के सीने में
ये ज़िरह को तोलता
समेटना था नभ को
ये गिरह को खोलता
पा लेते जो मुक्कमिल जहाँ
तो कौन क़दमों में जान डालता
शोर भी इसी का है
है बाँध सारे तोड़ता
सात पर्दों में रखा हुआ
अस्तित्व को झकझोरता
कैसा है ये भाव जो
सिर पे चढ़ के बोलता
अभाव भी है बोलता
दिलों के भेद खोलता
तड़प कसक के साथ ही
आँखों में है डोलता
शोर भी इसी का है
जवाब देंहटाएंहै बाँध सारे तोड़ता
सात पर्दों में रखा हुआ
अस्तित्व को झकझोरता....
बेहतरीन पंक्तियां....सुन्दर रचना
अभाव भी है बोलता
जवाब देंहटाएंदिलों के भेद खोलता
तड़प कसक के साथ ही
आँखों में है डोलता
बहुत सुंदर