बुधवार, 8 अप्रैल 2009

दूरियाँ किलोमीटर्स


७-अप्रैल-०९


बड़ी बेटी को बेंगलोर छोड़ कर घर पहुँची , सब कुछ वैसा ही था , छोटी बेटी घर पर परीक्षा की तैयारी के लिए आई हुई थी , पतिदेव अपनी सेमिनार के लिए मुम्बई जाने के लिए तैयार थे , बाकी सब कुछ वैसा ही था , पर मन कहीं छूट गया था , बस बेचैनी थी | काश ...इस काश के आगे तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है पर मैनें अपने मन को बेलगाम चलने की आज्ञा नहीं दी हुई है .....और काश के आगे की सब बातें तभी सम्भव हैं जब ऊपर वाला उन्हें जायज और सहज बनाये | ऑन्लाइन बड़ी बेटी से बात की .....फोटो देखकर कहा कि ' लग रहा है गेस्ट रूम के उसी कमरे में हो आई हूँ .....तुम्हारी आवाज सुनकर .....उबासी लेती हुई तुम ....तुमसे मिल आई हूँ | '


बेटी ने कहा ' कौन कहता है दूरियाँ किलोमीटर्स में होती हैं


हम तो नजदीकियाँ दिल से देखते हैं '


मैनें कहा ' वाह वाह , लिखती तो तुम थीं पर शायरा कब से हो गईं ? '


उसने कहा ' हेरिडिट्री प्रॉब्लम है ' और हम दोनों हा हा कर हँस उठे |


फिर उसने कहा ' ममा रात को कभी उदास नहीं सोना चाहिए ' |


और मैनें कहा ' तो आज के लिए इतना काफी है .....तुम मुस्कुराती रहो मैं मीलों खुश चलूँगी '


दोनों ने एक दूसरे को गुड नाईट कहा | अपने निजी पलों को लेखनी के साथ बाँट रही हूँ .....देखो मेरी लेखनी भी मुस्करा उठी | [:)]

8 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चो से दूर होना अक्सर उदास कर देता है

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  2. एक मां के लिए बच्‍चों से दूर रहना मुश्किल हो जाता है ।

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  3. Shardaji, kshama prarthi hun..bin padhe likh rahee hun...aapkee pyarbhree tippaneese manko sukoon mila...maine likhna band nahee kiya..likhtee jaa rahee hun..
    Parson "lizzat" blogpe likha...aap "ye kahan aa gaye ham" zaroor padhen....waise, badme phonpe baat kar lenge...chinta na karen...
    aapko any links mai kal parson tapseelse de doongee..
    adar aur snehsahit
    Shama

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  4. Wah!Bahut achha laga aaj aapko padhke!Bitiyane khoobhee panktiyan kah deen!

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