अन्धेरे में चलना किसे रास आता, कुछ ऐसी रोशनी मुहैय्या करा दो
अन्गनें में खड़ा सूरज , अँखियों पे पड़ा पर्दा हटा दो
अँधेरा नहीं है जीवन की डोरी ,उजली किरण ही है आशा की लोरी
ठण्डी हवाओं को आने की दावत , सावन की पेंगें बढ़ा दो
बेलगाम पानी क्यों बहे नालियों में ,मेढों को बांधों खेतों को सजा दो
जड़ों में पानी डालो,सूखी टहनियों पे भी हरे पत्ते सजा लो
सावन- भादों के आने की देरी, फूलों के खिलने में फ़िर क्या है देरी
देखा है फूलों को टकटकी लगाये ,सूरज सँग सोते सूरज सँग जगते
क्या है ये नाता धरती और सूरज का ,जीवन और किरण का ,
मन को समझा दो
सुनहरी रंग किसे नहीं भाता ,खप जाता है हर रँग सँग ,सबसे मुखर होकर,
ये ख़ुद को सिखा दो
अपकी कविता पढ्कर लगता है कि ठंडी हवाओं को दावत देनी ही पडेगी गर्मी बहुत हो रही है सुन्दर ाभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंसही कहा निर्मला जी आपने ...
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
एक सुन्दर आशावादी रचना.
जवाब देंहटाएंअन्गनें में खड़ा सूरज , अँखियों पे पड़ा पर्दा हटा दो
सुनहरी रंग किसे नहीं भाता ,खप जाता है हर रँग सँग ,सबसे मुखर होकर,
ये ख़ुद को सिखा दो
लिखते रहिये