सोमवार, 5 जनवरी 2009

कोई नहीं रोकेगा



मुझको कोई नहीं रोकेगा

रस्सियाँ लेकर

मैं बड़ी दूर चला जाऊंगा

पतवारें लेकर

अठखेलियाँ करनी हैं , लहरों से

समँदर के इशारे लेकर

कितने दिल धड़कते हैं , मेरे सीने में

मांझी से सहारे लेकर

मंजिलें दूर सही , सफर लंबा तो क्या

जोश आयेगा

बिछडे दिलों के मिलने की साँसें लेकर

रोजी-रोटी कमाने की आसें लेकर

बंधा हुआ हूँ अपनी मर्जी से ,किनारों से

साहिल से मिलने की तमन्ना लेकर

केरल का तट हो , मौसम विकट हो

मुझको कोई नहीं रोकेगा

रस्सियाँ लेकर

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