मुझको कोई नहीं रोकेगा
रस्सियाँ लेकर
मैं बड़ी दूर चला जाऊंगा
पतवारें लेकर
अठखेलियाँ करनी हैं , लहरों से
समँदर के इशारे लेकर
कितने दिल धड़कते हैं , मेरे सीने में
मांझी से सहारे लेकर
मंजिलें दूर सही , सफर लंबा तो क्या
जोश आयेगा
बिछडे दिलों के मिलने की साँसें लेकर
रोजी-रोटी कमाने की आसें लेकर
बंधा हुआ हूँ अपनी मर्जी से ,किनारों से
साहिल से मिलने की तमन्ना लेकर
केरल का तट हो , मौसम विकट हो
मुझको कोई नहीं रोकेगा
रस्सियाँ लेकर
बहुत खूब .........
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब...
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चाँद, बादल और शाम
बहुत ही सुंदर विचार लिये है आप की यह कविता, एक सुंदर सपना लिये.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद