जो थमा तो तू थमा , वक़्त ने थमना नहीं
तू चले जो साथ इसके , इसमें है गरिमा तेरी
तू सजा ले अपनी दुनिया , आज और इस पल अभी
वक़्त है दुनिया का मेला , आज तम्बू इस जगह
तू भी बह ले साथ इसके , मौज मस्ती रंग में
कल को देखेंगे समाँ , किस जगह , किस किस तरह
जो थमा तो तू थमा , वक़्त ने थमना नहीं
वक़्त है नदिया का पानी , रुख है इसका सागर तरफ़
तू भी चल इसकी तरह से , स्वच्छ , निर्मल और धवल
चलना तेरा धर्म है , सागर तरफ़ , मंजिल तरफ़
जो थमा तो तू थमा , वक़्त ने थमना नहीं
वक़्त है दुधारी तलवार , सिर पर लटकी पैनी सी
कब गिरेगी किसके सिर पर , औ कर देगी धड़ अलग
लगा ले सबको गले , राही भी तू , रहबर भी तू
जो थमा तो तू थमा , वक़्त ने थमना नहीं
"कल को देखेंगे समाँ , किस जगह , किस किस तरह
जवाब देंहटाएंजो थमा तो तू थमा , वक़्त ने थमना नहीं"
खुबसूरत भाव| पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, अब आता रहूँगा|
Waah ! baahut sundar !
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल सही फ़रमा रही हैं आप ज़िन्दगी आगे बढ़ने का नाम है, रुकने का नहीं
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
बहोत खूब लिखा है आपने ,दृढ़ और प्रबल इक्षा शक्ति को प्रर्दशित करती हुई ये कविता ... बहोत ही बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंअर्श