बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मानिनी की जान गई

और जब आया सूरज 
मानिनी रूठ गई 
तुम सूरज हो 
हमने तुम्हें माना है 

रोज आता है धरा पर 
जायेगा भी कहाँ 
मानिनी जान गई 

रुई की तरह धुन-धुन कर 
कलेजा छलनी हुआ 
वो चले अपने रस्ते पर 
मानिनी की जान गई 

मनुहार करनी नहीं आती सूरज को 
थक के सो जाता है 
हर सुबह खड़ा है वहीँ 
मानिनी भूल गई 

उम्मीद वही , ज़िन्दगी भी वही 
सारी दुनिया एक तरफ 
अपने मन के मौसम तो 
सूरज के साथ खड़े 
क्यूँ मानिनी रूठ गई ...


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