शुक्रवार, 8 मार्च 2013

जीवन के मन-भावन रँगों में

महिला-दिवस पर ...

नारी होना अभिशाप नहीं 
धरती बनना , ये सबके बस की बात नहीं 

माँ बेटी बहन बहु से रिश्तों से अलंकृत 
सजता उपवन , खुशबू बनना क्या खास नहीं 

सँग-सँग चलती , कभी पीछे-पीछे 
कभी प्रेरणा बन आगे-आगे , क्या तेरे मन की बात नहीं 

नाजुक है फूलों से भी बेशक 
काँटें भी रख लेती सीने में , क्या आदर्शों को मात नहीं 

कभी आड़ बने , कभी छत बन कर 
तेरे हिस्से की धूप सहे , है क्या वो तेरा अपना आप नहीं 

श्रद्धा है वो , विष्वास है वो 
जीवन के मन-भावन रँगों में , है क्या उसका मुखड़ा साथ नहीं 

गौरव भी है , वैभव भी है 
कन्धे से कन्धा मिला चलती , क्या सौभाग्य हमारे साथ नहीं 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  2. बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये
    कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

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  3. अगर सभी मानें कि नारी श्रद्धा है .प्रेरणा है खुशबु है,मान है तो सौभाग्य क्यूँ न सदा साथ रहेगा .

    सामायिक और बहुत ही सुन्दर भाव लिए सकारात्मकता का प्रसार करती कविता है.

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है