रविवार, 17 फ़रवरी 2013

बर्फ के कतरे से

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बर्फ के कतरे से यूँ पड़ने लगे हैं 
डाल से हरसिंगार की ,फूल ज्यों झरने लगे हैं 

बरसते हैं उपहार ऐसे भी
मौन कितना है मुखर , मन भीगने लगे हैं 

बादल ने बरसाया प्यार कतरा-कतरा 
धरती अम्बर कुछ यूँ मिलने लगे हैं 

कर लिया है श्रृंगार प्रकृति ने 
ऋतुओं के घर मेले लगे है

पेड़-पर्वत , घरों की ढलवाँ छतें 
ओढ़ चादर चाँदनी की ,दमकने लगे हैं 

किसी और ही दुनिया में आ गये हैं 
उजाले से चारों तरफ पड़ने लगे हैं  

खबर लग गई है सैलानिओं को 
कुदरत के हसीन नज़ारे भाने लगे हैं 


8 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

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  2. apne ghar se yeh sundar view dekh kar man kara raha hai ki vahan aa jao....yeh pic kya isi baar ki hai?maine samjha tha last year ki hai..

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  3. हाँ ..स्वाति ,ये फोटो सत्रह तारीख की है ...पिछले साल की पोएम और फोटो दूसरीं थीं ...

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  4. अच्छी लगी यह रचना ...
    आपका आभार !

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  5. सुंदर चित्रण!
    बर्फ के क़तरे और हरसिंगार... दोनों ही कितने खूबसूरत, कोमल-कोमल...! :-)
    आभार!
    ~सादर!!!

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