रविवार, 3 फ़रवरी 2013

मैं यहीं कहीं हूँ

इन्सानियत का चेहरा बस भगवान जैसा ही है 
भगवान को देखा तो नहीं है 
महसूस किया है बस  
नम सीने में जैसे रौशनी सी उतर आती है 
इन्सान ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी को खोज करता 
ज़िन्दगी कहती है , मैं यहीं कहीं हूँ ,तेरे आस-पास 
तुम शिकन ही शिकन देखा करते 
मैं निश्छल हूँ , किसी बच्चे के चेहरे की तरह 
मासूमियत , इन्सानियत और भगवान में कोई ज्यादा फर्क नहीं है 
शर्त बस एक ही है कि कोई शर्त न हो 
सीने में हो लबालब भरा प्यार , विष्वास हो , बेफिक्री हो 
जो है यही है , बस आज ही है 

1 टिप्पणी:

  1. acche insaan me are jeevan ki acchiyon me hum bhagwan ki jhalak pa sakte hain...
    zaroorat hai to bus zindagi to ek positive outlook se dekhne ki.tabhi hume bhagwan ko samajhne me aur mehsoos karne me asaani hogi.

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