कड़वे से घूँट
सब्र के प्याले से
हाय क्या अन्दाज़ हैं
दर्द के निवाले से
पाए हैं ज़ख्म
गुलाबों की चाह में
ज़िन्दगी की राह में
क़दमों तले छाले से
आपका हमारा साथ
बस यहीं तक था
रिश्तों को चाहिये
जमीं भी हवाले से
चला के पानी पे
भला क्या पायेंगे
बुलबुले जुगनू से
महज़ उजाले से
गढ़ता है वक्त
भट्टी में कुन्दन को
ज़िन्दगी के ये भी
अन्दाज़ हैं निराले से
सब्र के प्याले से
हाय क्या अन्दाज़ हैं
दर्द के निवाले से
पाए हैं ज़ख्म
गुलाबों की चाह में
ज़िन्दगी की राह में
क़दमों तले छाले से
आपका हमारा साथ
बस यहीं तक था
रिश्तों को चाहिये
जमीं भी हवाले से
चला के पानी पे
भला क्या पायेंगे
बुलबुले जुगनू से
महज़ उजाले से
गढ़ता है वक्त
भट्टी में कुन्दन को
ज़िन्दगी के ये भी
अन्दाज़ हैं निराले से
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (30-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
पाए हैं ज़ख्म
जवाब देंहटाएंगुलाबों की चाह में
ज़िन्दगी की राह में
क़दमों तले छाले से
....जिंदगी में जो सोचो सब अपने अनुरूप हो जाय तो फिर क्या बात ..लेकिन कल जाने क्या होगा यह कोई नहीं जान पाया है ....
गहरे अनुभव ....