कभी लगता बड़ा काम है , जी का जंजाल है
वक़्त नहीं मिलता और सोचों का मायाजाल है
खुदाया , क्या नजर का कुसूर है
चारों तरफ़ शेरों-गज़लों का राज है
कलम दवात उठाने की देर है , उतर आते हैं ये जिन्दगी में
क्या होता जिन्दगी में , गर करने को कुछ न होता
क्या जीना होता वाजिब , गर लुटाने को कुछ न होता
जिन्दगी तेरा सदका उतारने को जी चाहता है
हर कोई मालामाल है , बस नज़र का कुसूर है
jindagi tera sajdaa----- bahut hi badiyaa kaha hai badhaai
जवाब देंहटाएंइरशाद.
जवाब देंहटाएंकभी लगता बड़ा काम है , जी का जंजाल है
जवाब देंहटाएंवक़्त नहीं मिलता और सोचों का मायाजाल है
महेंद्र मिश्र "निरंतर"
जबलपुर
बहुत बढिया रचना है। बधाई।
जवाब देंहटाएंइसी का नाम है जिन्दगी..बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंइसी को ज़िन्दगी कहतें है शायद ... ढेरो बधाई आपको..
जवाब देंहटाएंअर्श
बहुत सुंदर....
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंSahi kaha......bas nazar ka hi kusur hai..
जवाब देंहटाएंSundar rachna.