नहीं नाराज नहीं
खाते हैं , पीते हैं , इबादत भी करते हैं
उम्मीद अब मुरझाने लगी है
गम कोई खाने लगी है
इंतज़ार को बहलाने के लिये शब्द कम पड़ने लगे हैं
नीँद आँखों से कोसों दूर
सपने माँगते मुआवज़ा
बीज बोये , अम्बर ओढ़ाए
मेहरबानियों ने मुँह मोड़ा
आदमी वक्त से पहले मर जाता है
जब वो गुलशन से मुँह मोड़ लेता है
चाँद-सितारे , धरती-अम्बर , बहारें सारे
हो जाते हैं बेमायने
रँग सारे कौन चुरा ले गया
नूर के वो शामियाने कहाँ गए
पलट दे जो तू दो-चार सफ्हे
मैं इन वरकों को भुला दूँ
न आये हों जैसे ये दिन भी कभी
गम के सारे अहसास सुला दूँ
नहीं नाराज नहीं ...
मंगलवार, 28 जून 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंनीँद आँखों से कोसों दूर
जवाब देंहटाएंसपने माँगते मुआवज़ा
बहुत ही भावपूर्ण रचना बधाई....
अति सुंदर भावपुर्ण कविता.
जवाब देंहटाएंमेहरबानियों ने मुँह मोड़ा
जवाब देंहटाएंआदमी वक्त से पहले मर जाता है
जब वो गुलशन से मुँह मोड़ लेता है
चाँद-सितारे , धरती-अम्बर , बहारें सारे
हो जाते हैं बेमायने
रँग सारे कौन चुरा ले गया
Haan! Aisahee hota hai!
भावपूर्ण कविता ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों की अनुपम अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंआपकी काव्य प्रतिभा कमाल की है.