संवेदनाएँ चलती हैं
ऊँचा हो जाता है जब
क़द सर से
संवेदनाएँ छलती हैं ।
मुश्किल है
मन चलता है
पकड़ के मुट्ठी में रखना
खलता है ।
मन के पानी पर
बनती बिगड़ती तस्वीरें
बहुत बोलती हैं ;
मौका लगते ही
बाँध के सारे द्वार खोलती हैं ।
कोई ऐसी दिशा दे
कि न रोये नादाँ
खुद को छल के ही
न खुश होवे इंसाँ ।
संवेदनाओं के पँख
अगर हों उजले
धुल जाए मन का मैल
पारदर्शिता के तले ।
संवेदनाओं को
दिशा मिलती है
दशा बदलती है ।
ऊँचा हो जाता है जब
क़द सर से
संवेदनाएँ छलती हैं ।
मुश्किल है
मन चलता है
पकड़ के मुट्ठी में रखना
खलता है ।
मन के पानी पर
बनती बिगड़ती तस्वीरें
बहुत बोलती हैं ;
मौका लगते ही
बाँध के सारे द्वार खोलती हैं ।
कोई ऐसी दिशा दे
कि न रोये नादाँ
खुद को छल के ही
न खुश होवे इंसाँ ।
संवेदनाओं के पँख
अगर हों उजले
धुल जाए मन का मैल
पारदर्शिता के तले ।
संवेदनाओं को
दिशा मिलती है
दशा बदलती है ।
बहुत सुन्दर ढंग से संवेदनाओं को उकेरा है
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएँ चलती हैं
जवाब देंहटाएंऊँचा हो जाता है जब
क़द सर से
संवेदनाएँ छलती हैं ।
सम्वेदनाओं को सम्वेदनात्मक रूप से व्यक्त किया है
सुन्दर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbehad sundar rachna
जवाब देंहटाएंsahi he sanvednaye chalkti he
जवाब देंहटाएंमन के पानी पर
जवाब देंहटाएंबनती बिगड़ती तस्वीरें
बहुत बोलती हैं ;
मौका लगते ही
बाँध के सारे द्वार खोलती हैं ।
अति सुंदर भाव,बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना
बहुत खूबसूरती से संवेदनाओं की बात कही है...
जवाब देंहटाएंकल मंगलवार को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
संगीता जी , विभिन्न फूलों की खुशबू से चर्चामंच महकता नजर आया । मैं ये मानती हूँ कि जैसा हम महसूस करते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व बन जाता है , और हमारे अहसास कितनी ही बार हमें छल जाते हैं , यही बात कही है संवेदनाएं छलती हैं में ।
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएँ जब छलकती हैं तो अंदर तक नम कर जाती हैं ... भिगो जाती हैं दिल को ...
जवाब देंहटाएंsach kaha apni samvednaye hi chhalti hai.bahut gahri baat.
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