बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

वो इतनी दूर

रँग आसमान का नीला क्यों
विरह पतझड़ सा पीला क्यों
यादों का तना गठीला क्यों
नश्तर सा समय नुकीला क्यों

कोई पूछ के आए तो उससे
वो इतनी दूर रँगीला क्यों
सपनों का पुलिन्दा चटकीला क्यों
भरमों का रँग भड़कीला क्यों

दिल में जो छुप कर बैठा है
पूछो पूछो , वो सजीला क्यों
आशा की उँगली पकड़ता है
रातों का ठिकाना ढीला क्यों

8 टिप्‍पणियां:

  1. "विरह पतझड़ सा पीला क्यों
    यादों का तना गठीला क्यों
    नश्तर सा समय नुकीला क्यों"
    सुंदर शब्दों से सजी समसामयिक रचना

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  2. बहुत ही बेहतरीन , दिल को गयी आपकी रचना , बधाई ।

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  3. मोहतरमा शारदा जी, आदाब

    रँग आसमान का नीला क्यों....विरह पतझड़ सा पीला क्यों
    यादों का तना गठीला क्यों......नश्तर सा समय नुकीला क्यों

    .......दिल में जो छुप कर बैठा है.....पूछो पूछो , वो सजीला क्यों
    आपकी रचनाओं में शब्दों की गहराई हमेशा देखने को मिली है...जो दिल को छू जाती है

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  4. रँग आसमान का नीला क्यों
    विरह पतझड़ सा पीला क्यों
    यादों का तना गठीला क्यों
    नश्तर सा समय नुकीला क्यों ...

    कुछ हमेशा से ही अनसुलझे सवाल .... सदियों से अपना उत्तर खोजते हुवे ... बहुत गहरा लिखा है आपने ... लजवाब ..

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  5. बहुत सुंदर ओर भाव पुर्ण कविता
    धन्यवाद

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