किसकी धज्जियाँ हैं उड़ीं
किसके नाम पर लड़े
जिसके लिए लड़े हो तुम
इन्सानियत शर्मसार है
कोई सुनता नहीं जो आवाजें
दँगा-फसाद , आगजनी
सदियों तलक कराहती
पीढ़ियों का कौन जिम्मेदार है
निशाने पर है भाईचारा
साजिशों का न शिकार हो
मजहब तो सिर्फ रास्ता
सबकी मंज़िल एक है
इन्सानियत बिलख रही
काँच सा चटक रही
टुकड़ों में देखो तो चेहरा
दीन-ईमान लहू-लुहान है
किसके नाम पर लड़े
जिसके लिए लड़े हो तुम
इन्सानियत शर्मसार है
कोई सुनता नहीं जो आवाजें
दँगा-फसाद , आगजनी
सदियों तलक कराहती
पीढ़ियों का कौन जिम्मेदार है
निशाने पर है भाईचारा
साजिशों का न शिकार हो
मजहब तो सिर्फ रास्ता
सबकी मंज़िल एक है
इन्सानियत बिलख रही
काँच सा चटक रही
टुकड़ों में देखो तो चेहरा
दीन-ईमान लहू-लुहान है
शारदा जी, आदाब
जवाब देंहटाएंखूब संयोग रहा दोनों ब्लाग पर.
और ये स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि
आपका लेखन हमसे बहुत आगे है
.....कोई सुनता नहीं जो आवाजें..दँगा-फसाद.. आगजनी...सदियों तलक कराहती..पीढ़ियों का कौन जिम्मेदार है ????
बेशक कोई और नहीं, ’हम’ खुद ही ज़िम्मेदार हैं
जिनके हाथ में आज है, और अवसर है..
इन्सानियत बिलख रही
जवाब देंहटाएंकाँच सा चटक रही
टुकड़ों में देखो तो चेहरा
दीन-ईमान लहू-लुहान है
-जबरदस्त!
nice
जवाब देंहटाएंनिशाने पर है भाईचारा
जवाब देंहटाएंसाजिशों का न शिकार हो
इस चेतावनी को हल्के से नही लेना चाहिए ...... भविष्य माफ़ नही करेगा हमें इस बात के लिए ........
Bahut sahi kaha....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंनिशाने पर है भाईचारा
साजिशों का न शिकार हो
मजहब तो सिर्फ रास्ता
सबकी मंज़िल एक है