मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

किसके नाम पर लड़े

किसकी धज्जियाँ हैं उड़ीं
किसके नाम पर लड़े
जिसके लिए लड़े हो तुम
इन्सानियत शर्मसार है

कोई सुनता नहीं जो आवाजें
दँगा-फसाद , आगजनी
सदियों तलक कराहती
पीढ़ियों का कौन जिम्मेदार है

निशाने पर है भाईचारा
साजिशों का न शिकार हो
मजहब तो सिर्फ रास्ता
सबकी मंज़िल एक है

इन्सानियत बिलख रही
काँच सा चटक रही
टुकड़ों में देखो तो चेहरा
दीन-ईमान लहू-लुहान है

6 टिप्‍पणियां:

  1. शारदा जी, आदाब
    खूब संयोग रहा दोनों ब्लाग पर.
    और ये स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि
    आपका लेखन हमसे बहुत आगे है
    .....कोई सुनता नहीं जो आवाजें..दँगा-फसाद.. आगजनी...सदियों तलक कराहती..पीढ़ियों का कौन जिम्मेदार है ????
    बेशक कोई और नहीं, ’हम’ खुद ही ज़िम्मेदार हैं
    जिनके हाथ में आज है, और अवसर है..

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  2. इन्सानियत बिलख रही
    काँच सा चटक रही
    टुकड़ों में देखो तो चेहरा
    दीन-ईमान लहू-लुहान है

    -जबरदस्त!

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  3. निशाने पर है भाईचारा
    साजिशों का न शिकार हो


    इस चेतावनी को हल्के से नही लेना चाहिए ...... भविष्य माफ़ नही करेगा हमें इस बात के लिए ........

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  4. बहुत सुन्दर!!

    निशाने पर है भाईचारा
    साजिशों का न शिकार हो
    मजहब तो सिर्फ रास्ता
    सबकी मंज़िल एक है

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