हैबोकी , उकाड़ा जिला मिंटगुमरी ( अब पकिस्तान में ) , १९२० के आसपास का कोई साल , एक बालक का जन्म हुआ , माँ ने तमन्ना की कि ये बालक सारे गाँव का चौधरी बने और नाम रख दिया 'चौधरी |' १३ , १४ साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया | अपने से छोटे पाँच भाई बहन .....सबसे छोटा भाई छह महीने का .... छठी क्लास में पढ़ते हुए .....माँ ने कहा अपने दोनों ताऊ जी के साथ आढ़त सँभालो | व्यवसाय की समझ सीखते सीखते कब मानवता का पाठ पढ़ गए , पता न चला १९४६ तक राजस्थान के एक गाँव में , घर , रुई मिर्चों के खेत , सन्तरे माल्टे के बाग़ खरीद लिए |ताऊ चाचा इस बात के खिलाफ रहे कि हिन्दुस्तान का बँटवारा भी हो सकता है ; इसलिए कोई बँटवारे से पहले उनके साथ नहीं आया | वो सिर्फ अपनी दो शादीशुदा बहनों के परिवारों , अपनी माँ के कुछ रिश्तेदारों , अपने दो बच्चों ,पत्नी , दोनों छोटे भाईयों , एक छोटी बहन और एक भाभी के साथ राजस्थान में आकर बसे | बाकी चाचा बाबा के परिवारों में से या जो कोई भी भारत आना चाहता था उसे बँटवारे के बाद , दबंग लोगों को साथ लेजाकर रातों-रात निकाल लाये | सरहद के पार पास वाले गाँव गए लोगों ने भी जब सन्देश भेजे कि उनकी फलाँ फलाँ चीज पीछे छूट गयी है तो वो उसे बैलगाड़ी में लदवा कर उनके गाँव के पास छुड़वा देते थे | यही बालक बड़ा होकर गाँव का सरपँच बना | दोनों पक्षों की बात सुनकर फैसला देना ; घरेलू , आर्थिक , राजनीतिक कोई भी हो , हर झगड़े को चुटकियों में निपटा देता | निर्णय भी सर्वमान्य होता... सरहद के पास होने की वजह से उत्तरप्रदेश के तराई क्षेत्र में बसने का फैसला लिया|
पूरा नाम श्री चौधरी राम पपनेजा , और ये थे मेरे पिताजी | मेरे घर में गरीब या अमीर को परोसी जाने वाली थाली में कोई भेद नहीं किया जाता था | किसी सम्बन्ध को भुनाया भी नहीं जाता था | अनुशासन , सुरक्षा , मर्यादा की परवाह आचरण में कूट कूट कर भरी थी | उनके छोटे बहन भाईयों और उनके बच्चों ने उन्हें पिता , दादा का ही सम्मान दिया | मेरी माँ से सदा ' तुसी तुसी ' (आप ,आप ) कह कर बात करने वाले , मेरे निडर , रोबीले पिता भारतीय जनता पार्टी के पहले जिला अध्यक्ष चुने गए | जनसँघ में रहते हुए विधान सभा सदस्य का इलेक्शन लड़े और भारतीय जनता पार्टी की तरफ से १९७१ में इलेक्शन में खड़े हुए | जीतना न जीतना बेमायने है , क्योंकि उन्हों ने किसी चर्चा , पद या प्रसिद्धि की चाह ही नहीं की थी | न वे कभी रुके , न झुके , न बिके और न ही टूटे |
उनकी छह सन्तानों में मैं सबसे छोटी हूँ , बड़े तीन भाई बहनों का असामयिक निधन जीवन का सबसे दुखद पहलू रहा | विपत्ति के समय पता नहीं कौन सी ताकत इंसान को चलाती है | सबको साथ रखने का , अपने कर्तव्य निभाने का , स्नेह से गले लगाने का जज्बा ही शायद विपत्ति में ताकत बन कर उभरता है | जुलाई २३ , २००१ को माँ भी चलीं गईं , दिसंबर २००१ में ही पिता जी को दो हार्ट अटैक साथ साथ आए | जीवन की संध्या में तकलीफ में भी उफ़ तक न की , बस सबको आशीर्वाद ही देते रहे | १७ दिसंबर २००९ को उनका देहावसान हो गया | वो हमारे क्या , बहुतों के दिलों में जिन्दा रहेंगे |
लो गया , गया , वो गया
इक स्वर्णिम युग चला गया
इतिहास ने पन्ना पलट दिया
निश्छल जीवन , बेबाक नजर ,
उज्जवल वाणी का रूप गया
कितनों को थे समाधान दिए
कितनों को रोजी रोटी दी
न्याय तराज़ू लिए हुए
स्वहित में कंटक सेज चुनी
अधिकारों की गाथा कहता है
अपनत्व जो उनको सबसे मिला
पगड़ी जो पहनी उसूलों की
फिर दोष कोई ढूंढें न मिला
सम्मान भी रक्खा रिश्तों का
कर्तव्यों की बन पहचान रहे
मानव के इस चोले में
विक्रमादित्य से राजा राम रहे
न आयेंगे कभी अब लौट के वो
नहीं नहीं , वो तब-तब आयेंगे
जब-जब हम अपने जीवन में
मानवता का भाव जगायेंगे
वो आयेंगे , वो आयेंगे , वो आयेंगे
निश्छल जीवन , बेबाक नजर ,
उज्जवल वाणी का रूप लिए
वो आयेंगे , वो आयेंगे , वो आयेंगे
पूरा नाम श्री चौधरी राम पपनेजा , और ये थे मेरे पिताजी | मेरे घर में गरीब या अमीर को परोसी जाने वाली थाली में कोई भेद नहीं किया जाता था | किसी सम्बन्ध को भुनाया भी नहीं जाता था | अनुशासन , सुरक्षा , मर्यादा की परवाह आचरण में कूट कूट कर भरी थी | उनके छोटे बहन भाईयों और उनके बच्चों ने उन्हें पिता , दादा का ही सम्मान दिया | मेरी माँ से सदा ' तुसी तुसी ' (आप ,आप ) कह कर बात करने वाले , मेरे निडर , रोबीले पिता भारतीय जनता पार्टी के पहले जिला अध्यक्ष चुने गए | जनसँघ में रहते हुए विधान सभा सदस्य का इलेक्शन लड़े और भारतीय जनता पार्टी की तरफ से १९७१ में इलेक्शन में खड़े हुए | जीतना न जीतना बेमायने है , क्योंकि उन्हों ने किसी चर्चा , पद या प्रसिद्धि की चाह ही नहीं की थी | न वे कभी रुके , न झुके , न बिके और न ही टूटे |
उनकी छह सन्तानों में मैं सबसे छोटी हूँ , बड़े तीन भाई बहनों का असामयिक निधन जीवन का सबसे दुखद पहलू रहा | विपत्ति के समय पता नहीं कौन सी ताकत इंसान को चलाती है | सबको साथ रखने का , अपने कर्तव्य निभाने का , स्नेह से गले लगाने का जज्बा ही शायद विपत्ति में ताकत बन कर उभरता है | जुलाई २३ , २००१ को माँ भी चलीं गईं , दिसंबर २००१ में ही पिता जी को दो हार्ट अटैक साथ साथ आए | जीवन की संध्या में तकलीफ में भी उफ़ तक न की , बस सबको आशीर्वाद ही देते रहे | १७ दिसंबर २००९ को उनका देहावसान हो गया | वो हमारे क्या , बहुतों के दिलों में जिन्दा रहेंगे |
लो गया , गया , वो गया
इक स्वर्णिम युग चला गया
इतिहास ने पन्ना पलट दिया
निश्छल जीवन , बेबाक नजर ,
उज्जवल वाणी का रूप गया
कितनों को थे समाधान दिए
कितनों को रोजी रोटी दी
न्याय तराज़ू लिए हुए
स्वहित में कंटक सेज चुनी
अधिकारों की गाथा कहता है
अपनत्व जो उनको सबसे मिला
पगड़ी जो पहनी उसूलों की
फिर दोष कोई ढूंढें न मिला
सम्मान भी रक्खा रिश्तों का
कर्तव्यों की बन पहचान रहे
मानव के इस चोले में
विक्रमादित्य से राजा राम रहे
न आयेंगे कभी अब लौट के वो
नहीं नहीं , वो तब-तब आयेंगे
जब-जब हम अपने जीवन में
मानवता का भाव जगायेंगे
वो आयेंगे , वो आयेंगे , वो आयेंगे
निश्छल जीवन , बेबाक नजर ,
उज्जवल वाणी का रूप लिए
वो आयेंगे , वो आयेंगे , वो आयेंगे
आपके पिता जी को विनम्र श्रद्धाँजली । रचना दोल को छू गयी। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हें इन्सान एक पल के लिये भी नहीं भुला सकता फिर पिता तो शायद बेटी के सब से करीब होते हैं। अच्छा लगा उनका परिचय पा कर धन्यवाद और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना,
रत्नेश त्रिपाठी
आपके पिता जी को विनम्र श्रद्धाँजली ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक लिखा है।दिल को छू गया।
पिता जी को विनम्र श्रद्धाँजली...
जवाब देंहटाएंऔर कुछ कहने को मेरे पास शब्द नहीं..भाव समझियेगा!