रविवार, 26 जुलाई 2009

हरी है वो डाली


छुट्टियाँ बिता कर बच्चों के वापिस लौटने का समय


जो ये दिन आता है तो वो दिन भी आता है
यही कह कर दिलासा देते हैं
जुदाई आती है तो मिलन भी सजता है
खामोश दिये रौशन होते , पतझड़ भी मुस्कराता है
हरी है वो डाली , मौसम तो आने जाने हैं
फ़िर आयेगी रुत मौसमे-गुलदाउदी की
मिलन की आस लिये विष्वास पानी पीता है
विरह किनारे रख के जीता है
कभी तो होगी मेरे मन की
यही कह कर दिलासा देते हैं
जो ये दिन आता है तो वो दिन भी आता है

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