गुरुवार, 9 जुलाई 2009

पहुँचता कोई कहीं नहीं



हर नजर है तूफ़ान समेटे हुए


हर दिल है आसमान लपेटे हुए


चलते हैं सब मगर


पहुँचता कोई कहीं नहीं


विष्वास है खोया हुआ


रिश्तों में अब नमी नहीं


नजर तो उठती हर तरफ़


भीड़ में चेहरों की कमी नहीं


हाथ तो बढ़ाते हैं


विष्वास साथ लाते नहीं


हर नजर है तूफ़ान समेटे हुए


हर दिल है आसमान लपेटे हुए

6 टिप्‍पणियां:

  1. हाथ तो बढ़ाते हैं
    विष्वास साथ लाते नहीं
    सही है बिना विश्वास के बढे हुए हाथ भी सहारा नही दे पायेंगे.
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  2. रिश्तों में अब नमी नहीं

    यह बात बिलकुल सही कही आपने बढ़िया लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण भावुक रचना....मन को छू गयी इसकी सच्चाई .....

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है