सूरज ....नाम था उसका ....अधेड़ उम्र की शुरुवाद और बीच रास्ते में साथी को अकेले छोड़ दुनिया से पलायन .....रिश्ते में दीदी ....उषा .....मिल कर लगा ...वो बता नहीं पा रही हैं मगर वेदना की छटपटाहट स्पष्ट छलक रही है ....मैं जो उन्हें कहना चाह रही थी , कह नहीं पाई ..वो कविता के रूप में प्रस्तुत है .....
वो गया तो ऐसे कि
जैसे सूरज जाता है
तुझको मालूम नहीं
कि कैसे बहानों से जिया जाता है , वो तेरी दुनिया का बहाना भर था
बेशक वो सिर पे सजे ताज की मानिन्द ,
बादशाहत का असर था
दुःख होते हैं उतने ही गहरे
जितना गहरा हम उन्हें अपनाते हैं
या कि जिन्दगी के जितने बड़े बहाने को हम खोते हैं
ओढ़ के चादर दुःख की बैठ जाते हैं
सूरज जाता है तो आकाश में चाँद -तारे छोड़ जाता है
उन्हीं चाँद -तारों को अपना कर लो
अपनी दुनिया का दायरा थोड़ा बड़ा कर लो
उषा नाम है तेरा
अपने उजाले से भी मिल आओ तो सही
वो थीं किस्मत की लकीरें
अपनी बोई लकीरों से भी मिलवाओ तो सही
भाव से पूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
shi yahi ek apaay hai ...........aap apane dayara ko bada kar lo
जवाब देंहटाएंbahut sunder bhav
जवाब देंहटाएंरापके आलेख की तरह ही एक सकारात्मक अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर आभार्
जवाब देंहटाएंवो गया तो ऐसे कि
जवाब देंहटाएंजैसे सूरज जाता है
तुझको को मालूम नहीं
कि कैसे बहानों से जिया जाता है , वो तेरी दुनिया का बहाना भर था
बेशक वो सिर पे सजे ताज की मानिन्द ,
बादशाहत का असर था
दुःख होते हैं उतने ही गहरे
जितना गहरा हम उन्हें अपनाते हैं
बहुत सुन्दर
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
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