अपने दुःख सुख से अलग , अपने आप से परे खड़े होकर देखा तो जिन्दगी को ऐसा पाया
शबनम की बूँदों को
सँभाले हूँ हथेलियों पे
न ये फिसलें
न ये ओझल हों , मेरी आँखों से |
न ये बिखरें , मेरे हिलने से |
न हों संभले तो
अनहोनी हो जायेगी |
जिन्दगी क्या ऐसी होती है !
जो ये निखरीं हैं , तो भीगी हूँ बारिश की फुहारों में
जो ये तपती हैं , तो तन्हाँ हूँ सहराँ के किनारों में
नूर की बूँदें हैं , हथेलियों पे चला करती हैं
बहुत ही सुन्दर रचना...शब्दों का चयन और उपयोग बहुत ही खूब ..किया आपने...
जवाब देंहटाएंनये बिम्बों का सुन्दर प्रयोग है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वाह ! वाह ! वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
shyad isi ka naam zindagi h
जवाब देंहटाएंbahut badhiya....man moh liya es rachna ne
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