बुधवार, 5 मार्च 2014

ऐसी दुनिया में कैसे चलिये

ऐसी दुनिया में कैसे चलिये 
आदमी ठगा है हुआ 
औरों को ठगने निकला है 
एक ही लाठी से हाँक रहा सबको 
चरवाहा बना बैठा है 

चुप से देख रहे हैं 
सच पे चलना , अँगारों पे चलने जैसा क्यों है 
भोलापन है अगर पाप ,तो ये गुनाह किया है मैंने 
न बुलवाना कोई झूठ , के ये ज़मीर पे भारी है 
मगर मुझे भी खुदा चाहिये ,तेरी तरफदारी है 
रिश्तों को बिगाड़ लेना , है बहुत आसाँ 
सँभालने में बड़ी दुश्वारी है 
बनने से पहले आदमी का रँग उधड़ जाता है 
ज़र्रे-ज़र्रे उधड़े को कैसे सिलिये 

कलम का मन भारी है 
खोटे सिक्के सा नकारती है दुनिया 
ऐसी राहों पर कैसे चलिये 
खुद को कैसे छलिये 
ऐसी दुनिया में कैसे चलिये 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति . ऐसे रह में कैसे चलिए .. KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.

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  4. कटु सत्य बखान करती है कलम आपकी!

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