उत्तरा-खण्ड में हुई भारी तबाही से उपजी ये पंक्तियाँ ...
त्राहि-त्राहि कर उठा हिमालय ,
फटा है सीना धरती का
केदार-नाथ , भगवान शिव की नगरी ,
और ताण्डव जल का
किस्मत के आगे हर कोई हारा ,
कहाँ ठिकाना पल का
शिव है आदि ,अन्त भी शिव ही
एक अकेला शिव ही सत्य है
एक प्रवाह में बहे सभी
नामोँ-निशाँ न कल का
ढह गईं इमारतें ताश के पत्तों सी
लाया सैलाब है पत्थर ,लाशें ,
मौत का ताण्डव , उजड़ा मन
और ज़िन्दगी सोच रही है
अपने छूटे , सपने रूठे
बेकस हाल है मन का
टूटी छत है , पेट में दाना नहीं अन्न का
ये तो बताओ , कहाँ है मरहम
यादों के रिसते जख्मों का
त्राहि-त्राहि कर उठा हिमालय ,
फटा है सीना धरती का
त्राहि-त्राहि कर उठा हिमालय ,
फटा है सीना धरती का
केदार-नाथ , भगवान शिव की नगरी ,
और ताण्डव जल का
किस्मत के आगे हर कोई हारा ,
कहाँ ठिकाना पल का
शिव है आदि ,अन्त भी शिव ही
एक अकेला शिव ही सत्य है
एक प्रवाह में बहे सभी
नामोँ-निशाँ न कल का
ढह गईं इमारतें ताश के पत्तों सी
लाया सैलाब है पत्थर ,लाशें ,
मौत का ताण्डव , उजड़ा मन
और ज़िन्दगी सोच रही है
अपने छूटे , सपने रूठे
बेकस हाल है मन का
टूटी छत है , पेट में दाना नहीं अन्न का
ये तो बताओ , कहाँ है मरहम
यादों के रिसते जख्मों का
त्राहि-त्राहि कर उठा हिमालय ,
फटा है सीना धरती का
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