कभी जो नाम तुमने हमें दिया था
अब न वो याद है , न चाहत ही बाकी
वक्त मिटा देता है क़दमों के निशाँ
यूँ ही नहीं कहते मरहम इसको
ये तो आदमी की फितरत है
कुरेद-कुरेद के ज़िन्दा रखता है ज़ख्म अपने
उस ओर से अब कोई ,
आवाज़ न लगाये मुझको
मैं बहुत दूर चली आई हूँ
यूँ तो अब असर होता नहीं
रंजो-गम तन्हाई का
वो लड़क-पन बहुत पीछे छोड़ आई हूँ
न वो दिल है , न नज़ारे हैं
बेमायने हुए सारे
फिर भी न छेड़ना तुम कोई तार
मुझे आज़माने के लिये
कभी जो नाम तुमने हमें दिया था
अब न वो याद है , न चाहत ही बाकी
वक्त मिटा देता है क़दमों के निशाँ
यूँ ही नहीं कहते मरहम इसको
ये तो आदमी की फितरत है
कुरेद-कुरेद के ज़िन्दा रखता है ज़ख्म अपने
उस ओर से अब कोई ,
आवाज़ न लगाये मुझको
मैं बहुत दूर चली आई हूँ
यूँ तो अब असर होता नहीं
रंजो-गम तन्हाई का
वो लड़क-पन बहुत पीछे छोड़ आई हूँ
न वो दिल है , न नज़ारे हैं
बेमायने हुए सारे
फिर भी न छेड़ना तुम कोई तार
मुझे आज़माने के लिये
कभी जो नाम तुमने हमें दिया था
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
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