सूरज चढ़ता है पूरब की ओर से
कभी चढ़ तू मेरी गली के छोर से
मिट जाएँ भरम मेरे सारे
बाँध लूँ मैं तुझे किसी डोर से
गेहूँ की बालियाँ हैं सुनहरी
खेत नाचते हैं जैसे किसी मोर से
टूटा मेरा ही नाता है देखो
दूर बैठी हूँ मैं किसी भोर से
मन के घोड़े दौड़ा लें चाहे जितना
बाँधे वहीँ खड़ा है कोई जोर से
हाँफ गई है मेरी सारी कामना
सारे शिकवे उसी चित-चोर से
पवन ,बरखा ,बदरी ,मौसम
गया कोई नहीं है छोड़ के
अपने भाग टटोलूँ बैठे-ठाले
बिजली चमके तो सूरज की ओर से
कभी चढ़ तू मेरी गली के छोर से
मिट जाएँ भरम मेरे सारे
बाँध लूँ मैं तुझे किसी डोर से
गेहूँ की बालियाँ हैं सुनहरी
खेत नाचते हैं जैसे किसी मोर से
टूटा मेरा ही नाता है देखो
दूर बैठी हूँ मैं किसी भोर से
मन के घोड़े दौड़ा लें चाहे जितना
बाँधे वहीँ खड़ा है कोई जोर से
हाँफ गई है मेरी सारी कामना
सारे शिकवे उसी चित-चोर से
पवन ,बरखा ,बदरी ,मौसम
गया कोई नहीं है छोड़ के
अपने भाग टटोलूँ बैठे-ठाले
बिजली चमके तो सूरज की ओर से
.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
सुंदर निश्चल और सरल रचना । अच्छी लगी पढते हुए
जवाब देंहटाएं'सूरज चढ़ता है पूरब की ओर से
जवाब देंहटाएंकभी चढ़ तू मेरी गली के छोर से
मिट जाएं भरम मेरे सारे
बांध लूं मैं तुझे किसी डोर से।'
अद्बुत कल्पना है सूरज को डोर से बांधना। ऐसा काम वहीं कर सकता है जिसकी कल्पना में ताकत हो। आपके कविता की चंद पक्तियां मानो पवनपुत्र हनुमान के समान हवा पर संवार होकर सूरज के अस्तित्व को आवाहन कर रही है।
शालिनी जी ,वन्दना जी , अजय जी और विजय जी रचना पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंप्यारी सी रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"
बहुत प्यारी रचना!
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर
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