गुरुवार, 29 नवंबर 2012

थोड़ा पुचकारा है

इक झन्नाटेदार थप्पड़ कुदरत ने 
हमें धीरे से मारा है 
टूट कर बिखर न जाएँ कहीं , थोड़ा पुचकारा है 

ज़िन्दगी की न्यामतें दे कर सभी 
चुपके से हाथ खींच लिया 
मेहरबानियों के हाथ में दारोमदार सारा है 

ज़िन्दगी जुए सी तो नहीं 
बिछी हुई है बाजी 
अरमानों ने हमें हारा है 

दूर आसमान से भरता है कोई रौशनी 
ज़मीन के इन तारों में 
मनाता है कोई जश्न और सजाता है कोई तन्हाई , बेचारा है 

3 टिप्‍पणियां:

  1. इक झन्नाटेदार थप्पड़ कुदरत ने
    हमें धीरे से मारा है
    टूट कर बिखर न जाएँ कहीं , थोड़ा पुचकारा है
    Wah! yahee to zindagee ka ravaiyya hai!

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब बेहद गहरी रचना ह्रदय में बस गई,
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है