गुरुवार, 6 सितंबर 2012

ज़िन्दगी के वास्ते

वही बहाने , ना-नुकर के फ़साने 
उदासियों में इज़ाफा 
चलें तो चलें कैसे 
चलें जो दिल से तो गुज़र होती नहीं 
चलें दिमाग से तो दिल सा कोई मिलता नहीं 

फूल कलियाँ , तीर तरकश , सुइयाँ काँटे 
नसीब ने झोली भर भर बाँटे 
फूलों के मुखड़े तो भूले 
सुइयाँ काँटे उम्र सारी ले बैठे 

कोई लत , कोई शौक ,  कोई सनक 
तो चाहिए ज़िन्दगी के वास्ते 
किसी और ही लय को माँगती है ज़िन्दगी 
कोई खनक तो चाहिए ज़िन्दगी के वास्ते  ...

4 टिप्‍पणियां:

  1. चलें जो दिल से तो गुज़र होती नहीं
    चलें दिमाग से तो दिल सा कोई मिलता नहीं
    Zindagee me aisahee hota hai!

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  2. सच में कई बार लगता तो ऐसा ही है...पर क्या करें...जिंदगी तो चलती ही है..कितनी भी बोझ सी बन जाए जिदंगी ढोनी तो पड़ती ही है....पर कोई न कोई बहाना तो बनाना ही होता है जिदंगी में.चलते रहने के लिए...
    कविता काफी करीब है अहसासों के कितना सही लिखा है कि कोई खनक तो चाहिए ही जिदंगी के वास्ते

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