गुरुवार, 12 जनवरी 2012

नैनीताल की बर्फ़बारी





रुई के फाहे से गिर रहे हैं चारों तरफ
मेरे अल्लाह जन्नत सा नज़ारा है

ये कौन सी दुनिया है जहाँ में
कुदरत का इतना हसीन फव्वारा है

बरसतीं हैं नेहमतें उसकी झोली से
आज फिर इक बार उसने हमें पुकारा है

पेड़ों की डालियों पे , तारों पे , छतों पे
मुण्डेरों पे चाँदनी ने पाँव पसारा है

देख लो , देख लो फिर इक बार जी भर के
बर्फ ने सारा शहर उजला सा निखारा है

चाय की प्याली सुड़कते हुए हम लोग
ठिठुरती सी गलन , जोश ने फिर भी जोश मारा है

बजने लगा है सँगीत चारो तरफ
या खुदा ये नज़र है या नज्जारा है

2 टिप्‍पणियां:

  1. बरसतीं हैं नेहमतें उसकी झोली से
    आज फिर इक बार उसने हमें पुकारा है

    पेड़ों की डालियों पे , तारों पे , छतों पे
    मुण्डेरों पे चाँदनी ने पाँव पसारा है
    Wah! Kya gazab likha hai!

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  2. khushkismat hein wo jinhein ye nazaaraa dikh rahaa hai
    ham baithe hein registaan mein
    jahaan waqt abhee bhee dhool udaa rahaa hai

    जवाब देंहटाएं

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