यूँ दूर के चन्दा हो
सारी बातेँ न पहुँचतीं तुझ तक
मेरी सदायें लौट आतीं मुझ तक
चाँदनी रात का भरम ही सही
तेरा इतना सा करम ही सही
है आसमाँ तो अँधेरा बहुत
चाँद के साथ सारे तारे आते हैं निकल
मेरा तारों से कोई गिला ही नहीं
जिन्दा रहे ये आस के तू है सामने
मेरी हर राह पहुँचती तुझ तक
नजर के सामने तू है
काफी है मेरी पलकों पे उजालों की तरह
मेरी राह में तेरे क़दमों के निशानों की तरह
यूँ दूर के चन्दा हो
बुधवार, 28 सितंबर 2011
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बहुत सुंदर रचना...यूँ दूर के चंदा हो ..आभार
जवाब देंहटाएंचंदा के माध्यम से बेहतरीन रचना पेश की है आपने.
जवाब देंहटाएंसंवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
विवरण जज़्बात पर है
http://shahidmirza.blogspot.com/