ये जो सामान रखा है
कितना लहू , कितने चिथड़े हुए अरमान का है
जीवन तो वैसे भी पानी का बुलबुला
ज़रा सी ठेस लगी
बिखरा तो समेटा ही नहीं जाता
सूली पे टंगे हुए अरमान का है
ये जो सामान रखा है
लिखने चला है किस्मतें
रातों की नींद ले जायेंगी , सलीबें सारी
कोई पढ़ेगा फातिहा , कोई दुआ करेगा
इनमें अब भी है कोई आदमी सा बचा
कितनी चीखें , बिलखती यादें ,
तड़पते हुए इन्सान का है
ये जो सामान रखा है
हम छोटी छोटी बातों पर रो देते
टूटे हैं वादे , रूठी है जिन्दगी ,
उडीं हैं छतें
कहर ढाते हुए आसमान का है
ये जो सामान रखा है
आवाज हूँ मैं तेरे सीने की
कितना बारूद , बीमार है मन
धुआँ धुआँ हुए जमीर सा
सुनता ही नहीं तू
किस मिट्टी , किस कान का है
ये जो सामान रखा है
nice post...
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
Indeed Pathetic !
जवाब देंहटाएंदुर्भाग्यपूर्ण.......
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