कभी संध्या कभी सबेर
बस थोड़े से पल लगते
जिन्दगी के हाथों में बटेर
जमीन और आसमाँ के दरमियाँ
एक पतली सी लकीर
जितने भी सपने बुनो
जमीं खिसकी तो बने फ़कीर
धूप और छाया तकते
कच्ची वय के अबीर
जाने कब सो जाता
राह तकते तकते जमीर
सूरज उगता है बस तेरे लिए ....... मौके , हिम्मत और उम्मीद लिए ...... ये सौगात है बस तेरे लिए .....
जमीं खिसकी तो बने फ़कीर
जवाब देंहटाएंयही तो सच्चाई है लेकिन इन्सान इसको समझने में कभी कभी गलती करता है |
सच्चाई लिखी है... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएं'जाने कब सो जाता
जवाब देंहटाएंराह तकते तकते जमीर '
......................सुन्दर,भावपूर्ण रचना
जितने भी सपने बुनो
जवाब देंहटाएंजमीं खिसकी तो बने फ़कीर
....यही तो जीवन की सच्चाई है..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
mera Bharat hai mhan. karta hun dil se samman.
जवाब देंहटाएं२५ मई २०११ ४:१७ अपराह्न
rat ko sojata hun bahtar sapno ki intzar main
जवाब देंहटाएंरात और दिन का मेल
जवाब देंहटाएंकभी संध्या कभी सबेर
बस थोड़े से पल लगते
जिन्दगी के हाथों में बटेर
Behad khoobsoorat rachana!
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंरात और दिन का मेल
जवाब देंहटाएंकभी संध्या कभी सबेर
बस थोड़े से पल लगते
जिन्दगी के हाथों में बटेर...
बहुत सुंदर शब्दों में कही गई बात.
जाने कब सो जाता
जवाब देंहटाएंराह तकते तकते ज़मीर
सच कहा आप ने ज़मीर ही तो सोया हुआ है हमारा
सुंदर रचना
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
बस थोड़े से पल लगते
जवाब देंहटाएंजिन्दगी के हाथों में बटेर.
bahut sundar likhaa hai..