शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

कौन गीतों में उतरेगा , नज्मों में ढलेगा

बहुत अपने से जो लगते हैं , कुछ ऐसे रिश्तों के लिये ,

सावन के अन्धे को दिखता है हरा ही हरा
जेठ के जले को दुपहरी भी लगे बहाने की तरह

मिले हैं कुछ ऐसे रिश्ते भी
साथ चलने को मेहरबानी की तरह

है किसको पता , कौन गीतों में उतरेगा
नज्मों में ढलेगा रूहे आसमानी की तरह

हम उनकी बात टाल न सकें
ये कमजोरी है या ताकत पहेली की तरह

वो मुस्कराने लगते हैं अक्सर
यादों की क्यारी में जुगनुओं की तरह

वो जो लोग समा जाते हैं धड़कन में
इतने अपने हैं कि जिस्म में जाँ की तरह

थोड़े पैबन्द लगे थोड़े सितारे हैं टंके
जिन्दगी के दिलासे , पींगें सावन की तरह

तेरी दुनिया का नशा नाकाफी है
ये रिश्ते हैं या नाते सुरुरों की तरह

11 टिप्‍पणियां:

  1. वो मुस्कराने लगते हैं अक्सर
    यादों की क्यारी में जुगनुओं की तरह



    वो जो लोग समा जाते हैं धड़कन में
    इतने अपने हैं कि जिस्म में जाँ की तरह
    Behad nayaab panktiyan!

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  2. तेरी दुनिया का नशा नाकाफी है
    ये रिश्ते हैं या नाते सुरुरों की तरह
    वाह क्या बात है कितने खुबसूरत अलफ़ाज से रिश्ते नातों को समझाया है | बधाई

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  3. मिले हैं कुछ ऐसे रिश्ते भी
    साथ चलने को मेहरबानी की तरह
    बहुत खुबसुरत रचना, लेकिन एक सत्य है,
    धन्यवाद

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  4. है किसको पता , कौन गीतों में उतरेगा
    नज्मों में ढलेगा रूहे आसमानी की तरह

    बहुत अच्छी रचना है, शारदा जी बधाई.

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  5. bahut achchi lagi aapki nazm....
    indagi ki haqiqat bayan kar rahi hai ...

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  6. aaapko pahali bar padha sunder srijan .है किसको पता , कौन गीतों में उतरेगा
    नज्मों में ढलेगा रूहे आसमानी की तरह
    kya baat hai ---bhavmayi rachana .

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  7. मिले हैं कुछ ऐसे रिश्ते भी
    साथ चलने को मेहरबानी की तरह

    है किसको पता , कौन गीतों में उतरेगा
    नज्मों में ढलेगा रूहे आसमानी की तरह
    bahut hi badhiyaa

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  8. तेरी दुनिया का नशा नाकाफी है
    ये रिश्ते हैं या नाते सुरुरों की तरह.

    मन की भावनाओं का उत्तम चित्रण...

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