गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

लगते हैं फूल महकने वो

ऐसी कुछ यादें हर माँ के दिल में बसती हैं ...
तेरी फ्राकों पर काढ़े जो फूल
तेरे नन्हे तकिये पर
क्रोशिये से बनाई तितली
सीने में सहेजी यादों से आते हैं निकल
लगते हैं फूल महकने वो
तितली मँडराने लगती है

तेरे टोपे मोज़े बुनते हुए
जाने कब लड़कपन उड़ है गया
तेरी एक एक याद को रखना चाहा
फिर सोचा , यादों से उलझना ठीक नहीं
बातों में अटकना ठीक नहीं
बाँटीं तेरी कितनी चीजें
फिर भी , तेरी नन्ही रजाई मोतियों वाली , नानी का उपहार
नानी की याद भी बसी जिसमें
तेरा कोट भी एक फर वाला , रख डाला
तेरा नन्हा गोरा गुलाबी मुखड़ा तो
आज भी उसमें आता है नजर
मेरे मन के कोने से झाँकता है वो
फूल वो आकर महकने लगते
तितली मँडराने लगती है

8 टिप्‍पणियां:

  1. mujhe to bas itna hi kahna hai ki-

    kadee dhoop ki sakhtiyan jhel kar
    thee mamta jo misl e shajar ho gai

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  2. बहुत ममतामयी सुन्दर रचना..

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  3. ममतामयी सुन्दर रचना जो दिल में बस गयी बहुत बहुत बधाई

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  4. एक माँ के जज्बातों को बखूबी बयां करती ये पोस्ट शानदार लगी.....प्रशंसनीय|

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  5. आपके ब्लॉग पे आया, दिल को छु देनेवाली शब्दों का इस्तेमाल कियें हैं आप |
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट है
    बहुत बहुत धन्यवाद|

    यहाँ भी आयें|
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