बुधवार, 26 जनवरी 2011

पाने को है क्या बाकी

मेरे मन , कैसे तू बतायेगा
समझेगा , समझायेगा
पाने को है क्या बाकी
क्यों झोली फैलायेगा

अपने जो बड़े अपने
करते तीरों सा घायल हैं
मरहम भी नहीं रखते
रिसते हुए जख्मों पर
तेरा ही नहीं ये तो
हर इक का फ़साना है

दिए को तो जलना है
जलने का ये कायल है
हवा हो या आँधी हो
बाती में नमी रखना
हँसना है तेरे मन को
या जग को हँसाना है

तेरे ही तो टुकड़े हैं
तेरी राहों के मन्जर हैं
इनके बिन क्या है तू
तेरा ही खजाना हैं
बन जायेंगी ये यादें
जीवन को सजाना है

मेरे मन , कैसे तू बतायेगा
समझेगा , समझायेगा
पाने को है क्या बाकी
क्यों झोली फैलायेगा

7 टिप्‍पणियां:

  1. तेरे ही तो टुकड़े हैं
    तेरी राहों के मन्जर हैं
    इनके बिन क्या है तू
    तेरा ही खजाना हैं
    बन जायेंगी ये यादें
    जीवन को सजाना है
    Uf! Kya likha hai! Gazab kartee hain aap!

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  2. दिए को तो जलना है
    जलने का ये कायल है
    हवा हो या आँधी हो
    बाती में नमी रखना
    हँसना है तेरे मन को
    या जग को हँसाना है...
    अच्छी रचना की बेहतरीन पंक्तियां.

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  3. मेरे मन , कैसे तू बतायेगा
    समझेगा , समझायेगा
    पाने को है क्या बाकी
    क्यों झोली फैलायेगा
    भाव से सजी लेकिन कई सवाल पुछती हे यह कविता?? बहुत सुंदर जी धन्यवाद

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  4. सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
    बधाई

    --

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  5. मरहम भी नहीं रखते
    रिसते हुए जख्मों पर
    तेरा ही नहीं ये तो
    हर इक का फ़साना है

    बहुत ख़ूब !
    वाह !

    जवाब देंहटाएं

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