सोमवार, 17 जनवरी 2011

प्रकृति से दूर

नई पीढ़ी के बच्चों ने नहीं देखा
धूप के रँगों को साँझ में घुलते हुए
हो गये हैं प्रकृति से दूर
खुद में उलझे हुए
कैसी होती है सुबह
नहीं देखा पूरब में सूरज को उगते हुए
नहीं देखा हवाओं को ,
चिड़ियों से चहकते हुए
तुम्हारे घर में है भैंस , पेड़ ,
बिल्ली और बच्चे खेलते हुए
नहीं देखा शहरी पीढ़ी ने
जिन्दगी की खनक को गीत में ढलते हुए
नहीं देखा मिट्टी की सनक को ,
रूह में मचलते हुए
नई पीढ़ी के बच्चों ने नहीं देखा

8 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहती हैं आप..आज की पीढ़ी प्रकृति से दूर हो गयी है..बारिश में सोंधी खुशबु का भान भी नहीं है उन्हें..

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  2. शारदा जी, ये गांव की मिट्टी की महक सचमुच शहर में नसीब नहीं होती...
    बहुत अच्छा लिखा है आपने.

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  3. वाह शारदा जी.....इस रचना के माध्यम से आपने बहुत अच्छी और गहरी बात कही है......प्रकति में ही सबसे पहले उस विराट के दर्शन होते हैं|

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  4. सच कहा है ... आज के बच्चे प्राकृति से बहुत दूर हो गये हैं ... ये सब बातें वो आजकल बस नेट में देखते हैं ...

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  5. वाह! क्या बात कही है, आज के सच को खूबसूरती से बयान किया है!

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