किसी के जीवन का तू उजिआरा
सोलह कला सम्पूर्ण है तू
नित नया परिपूर्ण है तू
शाम ढले बज उठता मन का सँगीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा
इतराता बल खाता , निशा का साथी बन जाता
चन्दा तो है मन का प्रतीक
कह लेते हम कितनी बातें
जैसे तुझसे है जन्मों की प्रीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा
उगता गगन में नित नए आयाम लिये
प्रियतम का सा रूप लिये
करवा-चौथ को सारी सुहागिनें
माँगें और ढूँढें तेरी छवि में
अपने जीवन का मनमीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा
सारे उलाहने तुझसे हैं
खनकती चूड़ी बजती पायल
सारी दुआएँ तेरे सिर
तारों की चूनर गाये गीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा
मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा (करवा चौथ पर )
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उगता गगन में नित नए आयाम लिये
जवाब देंहटाएंप्रियतम का सा रूप लिये
करवा-चौथ को सारी सुहागिनें
माँगें और ढूँढें तेरी छवि में
अपने जीवन का मनमीत...
बहुत अच्छा लिखा है...
इस पर्व पर सभी को मंगल कामनाएं.
बहुत सुंदर कविता, आप को करवा-चौथ की बधाई
जवाब देंहटाएंचाँद पर इतनी सुंदर कविता ...... वो भी करवा चौथ के मौके पर...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..... शुभकामनायें स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंचाँद पर इतनी सुंदर कविता ...... वो भी करवा चौथ के मौके पर...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..... शुभकामनायें स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंPooree rachana me vilakshan naad hai!
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