शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

तार-तार सारी कहानी

कमजोर हो जाते हैं वो हिस्से
वक्त की चादर में पैबन्द लगे

चुक जायेगी उम्र सारी
ये कलाकारी रफू ही लगे

रफूगर के माथे पे शिकन
फनकारी भी मजबूरी ही लगे

गोटे-किनारी , सलमे-सितारे
हसरतों को ओढ़नी लगे

उम्र लगे सीते हुए
पलक झपकते ही रँग बदरँग लगे

टाँका-टाँका सिले लम्हे-लम्हे के सितम
टूटा टाँका तार-तार सारी कहानी ही लगे

7 टिप्‍पणियां:

  1. रफूगर के माथे पे शिकन
    फनकारी भी मजबूरी ही लगे
    गोटे-किनारी, सलमे-सितारे
    हसरतों को ओढ़नी लगे...
    बहुत खूबसूरत...अलग अंदाज़.

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  2. उम्र लगे सीते हुए
    पलक झपकते ही रँग बदरँग लगे
    ............................
    बड़ी भावप्रधान अभिव्यक्ति......

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  3. अद्भुत रचना...शब्द और भाव दोनों लाजवाब...

    नीरज

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  4. जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया..........बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी ........आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा .............आगे भी ऐसे ही बढ़िया पड़ने को मिलेगा इस उम्मीद में आपको फॉलो कर रहा हूँ | ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं -

    "चुक जायेगी उम्र सारी
    ये कलाकारी रफू ही लगे

    रफूगर के माथे पे शिकन
    फनकारी भी मजबूरी ही लगे"

    कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
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    http://khaleelzibran.blogspot.com/
    http://qalamkasipahi.blogspot.com/

    एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

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  5. अरे, आपके ब्लॉग पर मुझे कहीं भी फॉलो का आप्शन नहीं मिला |

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है