वक्त की चादर में पैबन्द लगे
चुक जायेगी उम्र सारी
ये कलाकारी रफू ही लगे
रफूगर के माथे पे शिकन
फनकारी भी मजबूरी ही लगे
गोटे-किनारी , सलमे-सितारे
हसरतों को ओढ़नी लगे
उम्र लगे सीते हुए
पलक झपकते ही रँग बदरँग लगे
टाँका-टाँका सिले लम्हे-लम्हे के सितम
टूटा टाँका तार-तार सारी कहानी ही लगे
रफूगर के माथे पे शिकन
जवाब देंहटाएंफनकारी भी मजबूरी ही लगे
गोटे-किनारी, सलमे-सितारे
हसरतों को ओढ़नी लगे...
बहुत खूबसूरत...अलग अंदाज़.
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंमशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
अंक-9 स्वरोदय विज्ञान, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
उम्र लगे सीते हुए
जवाब देंहटाएंपलक झपकते ही रँग बदरँग लगे
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बड़ी भावप्रधान अभिव्यक्ति......
अद्भुत रचना...शब्द और भाव दोनों लाजवाब...
जवाब देंहटाएंनीरज
जज़्बात पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया..........बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी ........आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा .............आगे भी ऐसे ही बढ़िया पड़ने को मिलेगा इस उम्मीद में आपको फॉलो कर रहा हूँ | ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं -
जवाब देंहटाएं"चुक जायेगी उम्र सारी
ये कलाकारी रफू ही लगे
रफूगर के माथे पे शिकन
फनकारी भी मजबूरी ही लगे"
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
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http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
अरे, आपके ब्लॉग पर मुझे कहीं भी फॉलो का आप्शन नहीं मिला |
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