याद आते होंगे तुम्हें कभी-कभी वो फेवर्स भी (तरफदारियाँ )
जो तुम्हारे पापा से , घर वालों से या दुनिया से पँगा लेते हुए भी ,
माँ ने तुम्हारे लिये किये होंगे
माँ होती है बच्चों की पहली-पहली दोस्त
तो पहली-पहली दुश्मन भी
वो बनती है काँटों की बाड़ भी कभी-कभी
ऐसे सारे लम्हे बन जाएँगे तुम्हारे व्यक्तित्व का हिस्सा
तुम्हारी यादों में बोलेंगे , ठोकेंगे तुम्हें ,
सहलायेंगे भी तुम्हें
और फिर तुम्हारी आँखों में उतर आयेंगे
तुम जो राह से भटकोगे तो परवरिश ही कहलायेगी
तुम जो फूलो-फलोगे तो नाम होगा माँ का भी
ये गुज़ारिश है हर माँ की तरह मेरी भी
जीवन की धूप में भी हिलना न तुम कभी
ठण्डी हवा के झोंकों से ये फेवर्स तुम्हें कहेंगे
के तुम दुनिया से जुदा हो
अपनी माँ के लिये तुम बहुत खास हो
हाँ तुम बहुत खास हो
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(११-११-२०२१) को
'अंतर्ध्वनि'(चर्चा अंक-४२४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर हृदय तक उतरते एहसास।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंइस ख़ुदगर्ज़ दुनिया में माँ कहाँ से आ गयी?
लगता है यह किसी दूसरे ग्रह से आई है !
सही कहा माँ के फेवर्स!
जवाब देंहटाएंकहाँ समझते हैं बच्चे उन फेवर्स को जो उनकी गलती को भी सही साबित करते है उन्हीं के पापा के आगे...
जितने फेवर्स मिलते है न कभी कभी बच्चे अपने को उतना ही सही बहुत सही समझने की गलतफहमी पाल लेते हैं।
मन मंथन करती लाजवाब रचना।
सभी को टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।गोपेश मोहन जयसवाल जी , लगता है , माँ शब्द से आपका विष्वास हिला हुआ है ।
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जवाब देंहटाएंये गुज़ारिश है हर माँ की तरह मेरी भी
जीवन की धूप में भी हिलना न तुम कभी
ठण्डी हवा के झोंकों से ये फेवर्स तुम्हें कहेंगे
के तुम दुनिया से जुदा हो
अपनी माँ के लिये तुम बहुत खास हो
हाँ तुम बहुत खास हो... सारगर्भित रचना ।