बुधवार, 21 जुलाई 2021

माँ


वही घर है बड़ा अपना सा लगता था 
माँ तुम चली गई हो बड़ा बेगाना सा लगता है 

तुम थीं तो घर भरा-भरा सा था 
सन्नाटा सा पसरा है , वीराना सा लगता है 

गुजर गया कोई कारवाँ सा 
यादों का कोई अफ़साना सा लगता है 

तुम्हारा प्यार था बेमोल , बेशक़ीमती 
दुनिया का प्यार , व्यवहार का नमूना सा लगता है 

जीवन की इतनी धूप जो मैं सह पाई 
तुम्हारा हाथ मेरे सर पर ,मेरी छाँव का ठिकाना सा लगता है 

हो गया हो इक युग का अन्त जैसे 
तुम्हारी गोद में सर रख के सो जाऊँ ,वही ख़ज़ाना सा लगता है 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-07-2021को चर्चा – 4,133 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. बहुत बढ़िया ममत्व से परिपूर्ण।

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  4. तुम्हारा प्यार था बेमोल , बेशक़ीमती
    दुनिया का प्यार , व्यवहार का नमूना सा लगता है
    एक माँ ही तो होती है जो निस्वार्थ भाव से बच्चों से प्रेम करती है बाकी दुनिया तो रंग, रूप, शौहरत और ओहदा देख कर प्यार करती है! बहुत ही मार्मिक सृजन

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  5. माँ के न होने से घर ही कहाँ रह पाता है ।
    सच्ची अभिव्यक्ति

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  6. ओह,अत्यंत हृदयस्पर्शी रचना !!

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