सोमवार, 10 अप्रैल 2017

श्रद्धाँजलि

राकेश गुप्ता जी के निधन पर श्रद्धाँजलि  

आज रोया है आसमाँ भी 
हाय खो दिया है हमने एक नम सीना 
तुमने जिया था ज़िन्दगी को एक शायर की तरह 
दर्द की इन्तिहाँ को जानता है एक शायर ही 

तुम चलते हुए कभी थके ही न थे 
वक़्त ने जकड़ा तो जंजीरों की तरह 
मौत की आदत है, ये बहाना माँगे 
तुमने पी लिये थे घूँट इसके , जीते-जी ही 
पिया इतना दर्द और किसी से बाँटा भी नहीं 

तुम्हारी साथी कलाइयों ने ,घबराहट में छू ली होंगी कितनी ही गर्म पतीलियाँ 
हाथ से छूटे होंगे सालन भी कई 
सारी जद्दो-जहद किसी काम न आई 
तुम आज़ाद हुए देह के पिंजरे से 
तुम्हारे बिना रीती दुनिया ,झाँक रही है किसी की आँखों से 
फेरों की वेदी से लेकर चिता की अग्नि की लपटों तक का सफर ,
घूम गया होगा किसी की आँखों के आगे से 

अब अतीत की यादें हैं , डूबें के किनारों पर ले आयें 
तुम सो जाओ कि तुम्हें ज़न्नत नसीब हो 
तुमने कभी किसी को दुख न दिया ,
तुम्हें सुख नसीब हो 

1 टिप्पणी:

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