क्या यही हूँ मैं
कनखियों से झाँकती बालों की सफेदी
दस्तक देतीं हुईं उम्र की लकीरें
वो सलोना चेहरा जिसे जानती थी मैं
कहाँ खो आई हूँ
जीवन की आपा-धापी में
हाय चैन इक पल न मिला
होश आया भी तो कब
आइना झूठ नहीं बोला करता
हर शिकन का राज़ वो खोला करता
फिसला है बहुत कुछ हाथों से
झपक रहा है वक्त आँखें
इक दौर गुजरा है सामने सामने
रुआँसा सा है सीने में कोई नन्हा बच्चा
उम्र ने कोई चाल चली है शायद
जिस्म ने किया है सफ़र
रूह मगर वहीँ है खड़ी
अभी तो और आगे जाना है
जब न होंगे मुँह में दाँत , पेट में आँत
क्या खा के चलाना है
दगा दे गये ख़्वाब , दुनिया भर के झमेले
छाया बने धूप की मेहरबानियों से
उम्र की चाँदी दे कर , सोना सारा साथ ले गये
क्या यही हूँ मैं
कनखियों से झाँकती बालों की सफेदी
रविवार, 12 फ़रवरी 2012
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Harek shabd,harek pankti umr ke takazeka ehsaas dilatee hai...dhoop kee meherbaniya...kya gazab ka phrase istemal kiya hai!
जवाब देंहटाएंसचमुच, कब जीवन बीत जाता है पता ही नहीं चलता ,
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
जीवन ऐसे ही बीत जाता हैं कुछ लेकर कुछ देकर ........
जवाब देंहटाएंयह भी जीवन का एक सत्य है. पछतावा क्या
जवाब देंहटाएंझपक रहा है वक्त आँखें
जवाब देंहटाएंइक दौर गुजरा है सामने सामने
रुआँसा सा है सीने में कोई नन्हा बच्चा
उम्र ने कोई चाल चली है शायद
जिस्म ने किया है सफ़र
रूह मगर वहीँ है खड़ी
अभी तो और आगे जाना है
शानदार !
शायद जीना इसी का नाम है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar yatharth ka bodh karati rachna..
जवाब देंहटाएंजिंदगी ऐसे ही गुजर जाती है...
जवाब देंहटाएं------
..की-बोर्ड वाली औरतें।