मरना मना है
वो जो रोज रोज मरते हैं
लम्हा लम्हा , ज़र्रा ज़र्रा
उसका क्या ?
कर्ज मर्ज , दँगा पँगा
नशा वशा , हर्ज तर्ज़
सौ बहाने मौत के
एक बूँद ज़िन्दगी से महरूम
बेकसी , बेचारगी , लाचारगी
कटोरा लिये हाथ में
भीख माँगे उपहारों की
सीने में जँगल झाड़ हैं
भड़के चिन्गारी दावानल सी
टूट फूट , मरम्मत होती सदियों से
निदान उपचार से बेहतर है
दो बूँद जिन्दगी की पिला
अकड़ न जाए मन कहीं
टूट कर मुर्दा हुए या नश्तर बने
जिन्दगी का रस ही आँचल बने
भूल कर भी न ठोकर लगा
सीने में मचलते अरमान हैं
तुझसे ही कई तूफ़ान हैं
दिशा दिखा , दशा बदल
जिन्दगी मेहरबान है
जिन्दगी मेहरबान है
सोमवार, 14 मार्च 2011
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वाह शारदा जी....क्या बात है.....बहुत खुबसूरत लगी ये पोस्ट.....कुछ अलग हट कर...प्रशंसनीय|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... शान्भाग के यथार्थ को सजीव रचना का रूप दे दिया है आपने ...
जवाब देंहटाएंसही आक्रोश झलक रहा है ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमरना मना है
जवाब देंहटाएंवो जो रोज रोज मरते हैं
लम्हा लम्हा , ज़र्रा ज़र्रा
उसका क्या ?
इसी का किसी के पास जवाब नही है क्योंकि सांस तो ले रहे है वो फिर चाहे हर सांस उधार की ही क्यों न हो…………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
मरना मना है
जवाब देंहटाएंवो जो रोज रोज मरते हैं
लम्हा लम्हा , ज़र्रा ज़र्रा
उसका क्या ?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
उम्दा चित्रण..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमरना मना है
जवाब देंहटाएंवो जो रोज रोज मरते हैं
लम्हा लम्हा , ज़र्रा ज़र्रा
उसका क्या ?
बहुत यथार्थपरक...सुन्दर और भावपूर्ण रचना..
भूल कर भी न ठोकर लगा
जवाब देंहटाएंसीने में मचलते अरमान हैं
तुझसे ही कई तूफ़ान हैं
दिशा दिखा , दशा बदल
जिन्दगी मेहरबान है
जिन्दगी मेहरबान है
Rachana me zabardast aakrosh bhee haihi...lekin ant kitna sakaratmak hai! Wah!
टूट कर मुर्दा हुए या नश्तर बने
जवाब देंहटाएंजिन्दगी का रस ही आँचल बने
भूल कर भी न ठोकर लगा
सीने में मचलते अरमान हैं...
वाह वाह वाह.
बहुत भावमयी सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं'क़र्ज़ मर्ज़ ,दंगा पंगा
जवाब देंहटाएंनशा वशा,हर्ज तर्ज़
सौ बहाने मौत के '
जिंदगी की तल्ख़ सच्चाई से, बड़े सलीके से रूबरू करने में सक्षम .....सुन्दर रचना
Holee kee dheron shubhkamnayen!
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