इस दम को लगाना था और कहीं
बिखरी दुनिया को सजाने में
रोशन करना था दुनिया को
दम लगा दिया बिखराने में
आधार ये कैसा उठा लिया
अपने मन को ठग ,समझाने में
आधार नहीं ये,विकृति है
दुनिया के सभ्य समाजों में
ईश्वर ही खुशियाँ बांटता है
नित आ कर नये नये रूपों में
क्यों मन पर बांधें बोझ चला
सर पर रक्खे उस पत्थर में
आहा,क्या मज़ा समंदर में
तैरने में ,हंसने गाने में
बिखरी दुनिया को सजाने में
रोशन करना था दुनिया को
दम लगा दिया बिखराने में
आधार ये कैसा उठा लिया
अपने मन को ठग ,समझाने में
आधार नहीं ये,विकृति है
दुनिया के सभ्य समाजों में
ईश्वर ही खुशियाँ बांटता है
नित आ कर नये नये रूपों में
क्यों मन पर बांधें बोझ चला
सर पर रक्खे उस पत्थर में
आहा,क्या मज़ा समंदर में
तैरने में ,हंसने गाने में
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