वक़्त फिसल जाता है मुठ्ठी से
बालू की तरह
हिस्से कुछ नहीं आता
हारे हुए प्यादे की तरह
झुनझुनों से बहलेंगें
तो बह जायेंगे तिनकों की तरह
उगा लेता है सब्ज़ बाग़ भी
कब्र गाहों पर
ये आदमी का हौसला है ,
चुन लेता है फूल
सीने में सब दफ़न करके
वरना चलना नहीं होगा
चलने की थकन लेकर
बालू की तरह
हिस्से कुछ नहीं आता
हारे हुए प्यादे की तरह
झुनझुनों से बहलेंगें
तो बह जायेंगे तिनकों की तरह
उगा लेता है सब्ज़ बाग़ भी
कब्र गाहों पर
ये आदमी का हौसला है ,
चुन लेता है फूल
सीने में सब दफ़न करके
वरना चलना नहीं होगा
चलने की थकन लेकर
thanks
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