रविवार, 21 जनवरी 2024

जीने का जज़्बा

अरमाँ की तरह जो संग चले 

बाहों में वो कुछ यूँ भर ले 

जैसे कोई अपना होता है 

जैसे कोई सपना होता है 

कानों में वो कुछ यूँ कहता 

धरती अपनी ,दुनिया अपनी 

मेरे संग खिले , मेरे संग जगे


जीवन की कोई परिभाषा 

कोई मापदण्ड होता है भला 

पकड़ो तो कोई ऐसी बात 

गुड़-चीनी की तो बात ही क्या 

मीठी सी खीर हो जैसे कोई 

भीनी सी ख़ुशबू संग लिए 

दिन-रात पगे ,हर पल महके 


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 जनवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है