शुक्रवार, 5 जून 2020

इम्प्रेशन्स

कहाँ धूमिल पड़ते हैं इम्प्रेशन्स
जो नक्श खुद गये सीने में
नहीं मिटते हैं उम्र भर
वो पहली-पहली बार के देखे-सुने
जो राय कायम कर ली किसी के बारे में

आदमी बदलना भी चाहे तो
आड़े आ जाती हैं अपनी ही मान्यताएँ
जो कल था वैसा ,आज भी वैसा ही मिलेगा
तू नहीं बदला , करता रहा ये तेरा है ये मेरा
ये दुनिया तो ऐसे ही चलेगी
जो कल था दोस्त वो ही दुश्मन हुआ है
तो जो आज दुश्मन है वो कल दोस्त क्यूँकर हो नहीं सकता
खोल कर रख तो सही दिल की किवाड़ें

आदमी मात खाता है
बाँध लेता है अपने ही पैरों में जँजीरें
क्या-क्या गुल खिलाती हैं अपनी रची ये धारणाएं
खुद ही खीँच लेता है पत्थर पर लकीरें
इसीलिए नहीं बह पाता है वक़्त के सँग-सँग
ये आदमी की फितरत है
चुभती बातें तो सालों-साल ज़िन्दा रखता है
अच्छाइयों की उम्र थोड़ी होती है , भुलाने में देर कहाँ रखता है
जब-जब जगमगाते हैं अपने विष्वास और आस्थाएं
दिखलाते हैं राह आदमी को
खुल जाती हैं अपार सम्भावनाएँ 

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