वो घूँट नदारद है
जो भरती है क़दमों में दम
वो प्यास नदारद है
सींचे जाते हैं खुद को ही ,
देते हैं अर्घ्य जब , दूर खड़े उस सूरज को
पहचानी हुई है वो गर्मी
अरमाँ की हर बात नदारद है
छोड़ो छोड़ो क्या कहना है ,
हम चल लेते अपने दम पर , झाँका अन्दर
नाम लिखा उसी का है
अपनी भी पहचान नदारद है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंहम चल लेते अपने दम पर ,
जवाब देंहटाएंझाँका अन्दर
नाम लिखा उसी का है
अपनी भी पहचान नदारद है
वाह...वाह
बहुत अच्छी रचना है शारदा जी, बधाई.
एक दार्शनिक रचना। जब आत्मा में झांका तो अपनी पहिचान न रही ,मै मै न रहा
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशारदा जी,
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत सुन्दर .....वाह ....और शब्द नहीं हैं मेरे पास....सफ़र के सजदे को आज ही फॉलो कर रहा हूँ....शुभकामनाये|
नाम लिखा उसी का है
जवाब देंहटाएंअपनी भी पहचान नदारद है
वाह क्या बात है। सुन्दर। बधाई।