रविवार, 9 अगस्त 2020

वो बसता है नेकी में

जिसको दिखती ही नहीं आगे चलने की डगर 
थोड़ा आसान तो हो जाये उसकी साँसों का सफर

कौन जाने किसकी पेशानी पे क्या-क्या लिक्खा 
जो भी देते हैं लौट आता है कई गुना हो कर 

जिसको हम ढूँढ़ते हैं इबादत-गाहों में 
वो बसता है नेकी में ,अपने बन्दों में आता है नजर 

लोग करते हैं दया ,दान और करुणा 
मजबूरी ,धर्म ,अन्ध-विष्वास या जोर-जबर्दस्ती से डर कर 

तेरे अँजुरि भर देने से ,बदल सकती है किसी की दुनिया 
जो तू रख सके तो रख सबकी ही खबर 

ये महल , अट्टालिकायें ,सोने सी लँका 
अधूरी हैं ,जो नहीं है किन्हीं दुआओं का असर 

मैं तो सिर्फ आईना दिखाऊँगी 
जो तेरा सोया ज़मीर जगे तो सोच , ठहर 

कभी किसी के दर्द का हिस्सा तो बन , 
किसी की मुस्कराहट का कारण तो बन 
तेरे आड़े वक़्त में यही पल आ खड़े होंगे ,तेरी ढाल बन कर 
शारदा अरोरा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  2. कभी किसी के दर्द का हिस्सा तो बन ,
    किसी की मुस्कराहट का कारण तो बन
    तेरे आड़े वक़्त में यही पल आ खड़े होंगे ,तेरी ढाल बन कर
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर ...लाजवाब।

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