शनिवार, 31 जुलाई 2021

औरत का अस्तित्व

बेशक घर के बाहर नेम प्लेट में नाम नहीं है मेरा 

मगर ये न कहना कि नहीं है अस्तित्व कोई भी मेरा 

तेरी तन्हाई में मै , बच्चों के बचपन में मैं 
तेरा हर दिन रौशन मुझसे 
घर की व्यवस्था भी चाक-चौबन्द मुझसे 
जर्रे-जर्रे पे छाप है मेरी 
कहाँ नहीं हूँ मैं 

घर की नींव में मुस्कराती हूँ मैं 
श्रद्धा और विष्वास के बीज बोती हूँ मैं 
हाँ मैं अपने लिए जीती हूँ 
मगर मेरा सँसार ही तू है 

मैं बहुत बहानों से जी लिया करती हूँ 
बच्चों की तरक्कियों में ,सपनों में ,उड़ानों में उड़ लिया करती हूँ 
तेरे सँग-सँग कदम मिलाते हुए ,तेरी आधी दुनिया हूँ मैं 
 तेरा हर रँग अधूरा मेरे बिन 
जो रँग भरता है किसी की दुनिया में 
वो चित्रकार हूँ मै 
कहाँ नहीं हूँ मैं 

शनिवार, 24 जुलाई 2021

प्रार्थना

 श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं  


सूरज उगता है तो प्रार्थना 
पक्षी गाते हैं तो प्रार्थना 
फूल खिलते हैं तो प्रार्थना 

गीत रचते हैं तो प्रार्थना 
मन गुनगुनाता है तो प्रार्थना 
मुस्कराते हैं हम तो प्रार्थना 

प्रेम का सागर हिलोरें लेता है तो प्रार्थना 
मन-मयूर नाचता है तो प्रार्थना 
झूम के अम्बर गाता है तो प्रार्थना 

मोल कर ले प्राणों का ,तू मधुर आत्मा 
फूलों सा खिल ले ,खुशबू है तेरी अर्चना 
प्रार्थना , प्रार्थना , प्रार्थना 

बुधवार, 21 जुलाई 2021

माँ


वही घर है बड़ा अपना सा लगता था 
माँ तुम चली गई हो बड़ा बेगाना सा लगता है 

तुम थीं तो घर भरा-भरा सा था 
सन्नाटा सा पसरा है , वीराना सा लगता है 

गुजर गया कोई कारवाँ सा 
यादों का कोई अफ़साना सा लगता है 

तुम्हारा प्यार था बेमोल , बेशक़ीमती 
दुनिया का प्यार , व्यवहार का नमूना सा लगता है 

जीवन की इतनी धूप जो मैं सह पाई 
तुम्हारा हाथ मेरे सर पर ,मेरी छाँव का ठिकाना सा लगता है 

हो गया हो इक युग का अन्त जैसे 
तुम्हारी गोद में सर रख के सो जाऊँ ,वही ख़ज़ाना सा लगता है 

शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

पकड़ें उजाले



दिल टूटे तो कौन संभाले

पीता क्यूँ है विष के प्याले 

इस दुनिया में कौन सखा है 

किस उम्मीद के चुग्गे डाले 


सहरा में जलता है कोई 

किसने देखे पाँव के छाले 

धुलते कहाँ राहों के हादसे 

सीने में उगे जो जँगल-झाले 


छेड़ो कोई ऐसी धुन 

पाँव थिरकते मनुवा गा ले 

अम्बर से बरसें किरणें 

लपक-लपक हम पकड़ें उजाले